"जिम्मेदारियां को ताख पर रखकर पुलिस कर रही सतही जांच", ऐसी तफ्तीश से आम जनता का घट रहा विश्वास, बिगड़ रही विभाग की साख।
अपराध पर विराम लगाने में खुद को बहुत सक्रिय दिखाने व दिखावटी वाहवाही लेने के चक्कर में हो रहे गुणवत्ता विहीन खुलासे,SP ले सकते है संज्ञान।

KTG समाचार- ब्यूरो प्रमुख जिला सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश।
सुल्तानपुर। सुमित प्रजापति हत्याकांड में कोतवाली देहात के थाना प्रभारी अखंडदेव मिश्र ने संदेह के आधार पर नामजद आरोपी कृपाशंकर उर्फ लल्लू चौरसिया को करीब एक हफ्ते पहले जेल भेजा। बाद में दो आरोपियों का नाम प्रकाश में लाकर उन्हें भी जेल भेजने की कार्रवाई की, लेकिन अब आरोपी लल्लू को बेगुनाह बताते हुए रिहाई की अर्जी दी। सीजेएम नवनीत सिंह ने बेकसूर होने के बावजूद एक हफ्ते से जेल काट रहे कृपाशंकर उर्फ लल्लू को सशर्त रिहा करने का आदेश दिया है। जिले के अन्य गम्भीर मामलों में भी सतही जांच की स्थिति सामने आई है।
कोतवाली देहात के उगईका पुरवा निवासी किशन कुमार प्रजापति ने बीते 27 जून की घटना बताते हुए अपने बेटे सुमित प्रजापति की हत्या के आरोप में गांव निवासी रिक्शा चालक लल्लू चौरसिया व उसके अज्ञात साथियों के खिलाफ संदेह के आधार पर मुकदमा दर्ज कराया। खुलासे करने में बहुत सक्रिय होने व गुडवर्क दिखाने के चक्कर मे आनन-फानन में विवेचक अखंडदेव मिश्र ने कृपाशंकर उर्फ लल्लू चौरसिया की असलियत को बिना ठीक से जांचे-परखे बीते दो जुलाई को उसे मुल्जिम बनाते हुए जेल भी भेज दिया। कोतवाली देहात के प्रभारी निरीक्षक अखण्डदेव मिश्र ने लल्लू को जेल भेजने के दो दिन बाद ही गांव के ही आरोपी अमन श्रीवास्तव व सत्यम यादव का नाम प्रकाश में लाते हुए उन्हें वास्तविक आरोपी बताकर जेल भेजने की कार्रवाई की,जिनके पास से हत्या में प्रयुक्त पेचकश भी बरामद होना बताया है।विवेचक अखंडदेव मिश्र ने सीजेएम कोर्ट में लल्लू चौरसिया के खिलाफ कोई साक्ष्य न मिलने व उसे निर्दोष होने की रिपोर्ट पेश करते हुए उसे जेल से रिहा करने की अर्जी दी। सीजेएम नवनीत सिंह ने विवेचक की अर्जी पर जेल भेजे गए कृपाशंकर चौरसिया उर्फ लल्लू को 50 हजार के मुचलके पर सशर्त रिहा करने का आदेश दिया है। पुलिस की इस लापरवाही पूर्ण सतही विवेचना से बेकसूर कृपाशंकर को एक सप्ताह तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा। ऐसे में पहले खुद ही जेल भेज कर सप्ताह भर के भीतर ही बेगुनाही का सबूत पेश करने वाली पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए है। बेगुनाह होते हुए भी हफ्ते भर जेल काटने व उसकी सामाजिक छवि पर होने वाली क्षति की भरपाई कैसे और कौन करेगा,यह अहम सवाल बना हुआ है। इन दिनों कुछ मामलों के विवेचकों के जरिये आनन-फानन में गलत खुलासे किए जा रहे है और बाद में अन्य अभियुक्तों का नाम प्रकाश में लाकर उन्हें जेल भेजने की कार्रवाई की जा रही है। ऐसे में पुलिस की पहले वाली जांच सही मानी जाय या फिर बाद वाली। शायद बाद वाली सच्चाई सामने न आती तो निर्दोष को जिंदगी भर जेल काटने की भी नौबत आ सकती थी। पुलिस की ऐसी सतही जांच से दोषियों को भी क्लीन चिट मिल जाने व निर्दोषों को भी बेवजह जेल जाने की पूर्ण संभावनाएं बनी हुई है। ऐसी सतही तफ्तीश के आधार पर कोर्ट में दाखिल पुलिस रिपोर्ट का केस ट्रायल पर क्या असर पड़ेगा,इससे भी जिले के बड़े अफसर अंजान बने हुए है। पुलिस अफसरों के जरिये अपने अधिकारों के दुरूपयोग व अपने दायित्वों के प्रति लापरवाह होने की बाते सामने आ रही है। ऐसे अफसर किसी को भी जब चाहे मुल्जिम बनाकर जेल भेज दें,जब मन चाहे उन्हें बेगुनाह होने की रिपोर्ट भेज दे। ऐसे अफसरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता,उनके लिए ये दायित्वो का निर्वहन है, लेकिन आम आदमी के जीवन पर इससे बहुत असर पड़ता है,इससे जिम्मेदार अफसर बेखबर बने हुए है। फिलहाल गुणवत्ता विहीन जांच करने वाले विवेचकों पर जिले के एसपी कुंवर अनुपम सिंह के जरिये जल्द संज्ञान लेने की भी उम्मीद जताई जा रही है।