क्लेम कोर्ट जज चोटहिल के खिलाफ FIR का दिया आदेश और मुआवजा वाली कोर्ट में मुकदमा मिलने से याचियों में हड़कंप।
क्लेम कोर्ट ने याची के आधार, DL व स्कूल TC में अलग-अलग जन्मतिथि व पता मिलने पर राज्य की सुरक्षा को माना खतरा और दिया जांच का आदेश।

KTG समाचार - ब्यूरो प्रमुख जिला सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश।
सुल्तानपुर- सिविल मामला आठ साल पहले सड़क हादसे में एक पैर गवां चुके याची को नहीं मिल सकी क्षतिपूर्ति , बल्कि अपने ही खिलाफ मिल गया एक मुकदमा , मोटर क्लेम दावा अधिकरण कोर्ट के जज लक्ष्मीकांत राठौर ने क्षतिपूर्ति पाने के लिए याचिका दाखिल करने वाले चोटहिल के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। क्लेम कोर्ट ने यह आदेश याची के अभिलेखों में अलग-अलग जन्म तिथि व पता अंकित होने के आधार पर दिया है। कोतवाली देहात के लोहरामऊ निवासी रामबख़्श उर्फ अशोक यादव ने पांच जुलाई 2017 को क्लेम कोर्ट में याचिका दाखिल की। उनके आरोप के मुताबिक तीन मार्च 2017 को एक सड़क दुर्घटना में उन्हें काफी चोटें आई थी, जिसमें उन्हें दाहिना पैर भी गंवाना पड़ा था। दुर्घटना में आई चोटों को लेकर उन्होंने क्षतिपूर्ति पाने के लिए याचिका दाखिल की थी। फिलहाल याचिका में सुनवाई के दौरान उनके आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस एवं स्कूल के स्थानांतरण प्रमाण पत्र व अन्य अभिलेख के अनुसार अलग-अलग जन्मतिथि व पता दर्ज होने की बात सामने आई। याची के अधिवक्ता ने उच्च अदालतों की विधि व्यवस्था का हवाला देते हुए स्कूल टीसी में दर्ज जन्मतिथि के आधार पर उम्र संशोधित करने के लिए अर्जी दी। उधर न्यू इंडिया बीमा कम्पनी के अधिवक्ता ने इस कृत्य को फ्राड बताते हुए आपत्ति जताई। याची के अधिवक्ता ने सुनवाई के दौरान आधार कार्ड व डीएल को उम्र का प्रमाण न होने का भी तर्क रखा और टीसी के आधार पर संशोधन की अनुमति मांगी। हालांकि कोर्ट ने माना कि अधिक लोकधन पाने के इरादे से याची ने यह अभिलेख दाखिल किये है। याची के अभिलेखों में अलग-अलग जन्मतिथि व पता आने की वजह से अदालत ने मामले में अपने पेशकार हरिराम यादव को कोतवाली नगर में एफआईआर दर्ज कराने का आदेश दिया है। क्लेम कोर्ट ने नगर कोतवाल को मामले में मुकदमा दर्ज कर उचित कार्रवाई का निर्देश दिया है। कोर्ट ने मामले में सुनवाई के लिए 21 जुलाई की तिथि नियत की है। कोर्ट के इस आदेश से दुर्घटना में पैर गवां चुके चोटहिल को आठ वर्षों बाद भी क्षतिपूर्ति तो नहीं मिल सकी,पर अलग-अलग अभिलेख सामने आने से मुकदमा जरूर मिल जाने की बात सामने आई है। हालांकि कोर्ट के इस निर्णय पर विधिक जानकारों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण का गठन उचित मूल्यांकन कर पीड़ितों को मुआबजा देने के लिए किया गया है,सामान्य कमियों को बड़ा रूप देकर पीड़ितों पर सख्त रवैया अपनाने के बजाय उनके अभिलेखो के आधार पर उचित क्षतिपूर्ति दिए जाने या पर्याप्त साक्ष्य न होने की दशा में उनके दावे को स्वीकार न करने की बात पर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कोर्ट का ऐसा निर्णय कष्ट से जूझ रहे पीड़ित परिवार के लिए दोहरी पीड़ा देने के समान है,इसलिए जब तक वास्तविक रूप में बहुत आवश्यक न हो,कोर्ट को क्षतिपूर्ति से जुड़े मामलों में तकनीकी पहलुओं पर ज्यादा गहराई में जाने के बजाय पीड़ितों को न्याय देने के लिए व्यापक हित मे विचार करना चाहिए। कई अधिवक्ताओं ने ऐसे निर्णय को पीड़ितों के लिए बहुत ही कष्टकारी बताते हुए हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से मामले में संज्ञान लेते हुए हस्ताक्षेप कर विवादित आदेशो का मूल्यांकन कर उचित एक्शन लेने व उचित निर्देश देते हुए पीड़ितों को न्याय दिलाने की बात कही है।