आजादी के बाद भी गांव मैं नहीं पहुंचा सरकार के कल्याणकारी योजना ग्रामीण आज भी पाषाण युग में जी रहे हैं

आजादी के बाद भी गांव मैं नहीं पहुंचा सरकार के कल्याणकारी योजना ग्रामीण आज भी पाषाण युग में जी रहे हैं

आजादी के बाद भी गांव मैं नहीं पहुंचा सरकार के कल्याणकारी योजना ग्रामीण आज भी पाषाण युग में जी रहे हैं
आजादी के बाद भी गांव मैं नहीं पहुंचा सरकार के कल्याणकारी योजना ग्रामीण आज भी पाषाण युग में जी रहे हैं

Ktg समाचार गुमला

प्रखण्ड-डुमरी---गुमला/झारखण्ड

जिला हेड अजित सोनी

Date-23-10-2021


Anchor-झरखण्ड में केंद्र की सरकार और राज्य की सरकार ने गांव के सुदूर व्रती  क्षेत्र में शहर जैसी सुविधा  सड़क ,पानी,बिजली,मेडिकल,रोजगार,शिक्षा और  सरकार की अन्य कल्यायन कारी योजना  गांव तक पहुचाने  की सरकार दावे कर रही है। वही दूसरी और  गांव की बदहाली ग्रामीण की लाचारी और नेता व अधिकारी की बे रूखी के कारण गांव बदहाली का दंस  झेल रही  है। जी हां,, हम ले चलते है। एक ऐसा गांव जहाँ कहने को तो  21वी सदी है। लेकिन गांव और गांव के ग्रामीण लोगो की तस्वीर देखने के बाद यहाँ गांव के लोग  पाषाण काल मे आज भी जी रहे है।

                    मामला जिले के डुमरी प्रखण्ड की है। जहाँ  मझगांव पंचायत के लुचुत पाठ गांव की यह तस्वीर दिखा रहे है। डुमरी  मुख्यालय से गांव की दूरी लगभग 15 किमी है।  बसा यह  गांव जहाँ ग्रामीण की संख्या लगभग 400 सौ के करीब है।  गांव  में  बिजली नही है। लोग ढिबरी जला कर रात बिताते है। ग्रामीण  चुआ का गन्दा पानी  3 किमी  की दूरी से पीने का पानी जुगाड़ करते है। गांव के लोगो को बीमार की हालत में  मेडिकल की सुविधा भी नही मिलता है। मरीज को अस्पताल ले जाना भी हो तो  मरीज को गेरुआ में ले जाना पड़ता है। वही प्रखण्ड मुख्यालय से जोड़ने वाली सड़क भी नही  है। जिससे गांव में अधिकारियों का आना जाना भी नही होता है। यदि सरकार की कल्याणकारी योजना भी दिया जाय तो नही पहुच सकता है। मझगांव पंचायत में कई ऐसे गांव है। लूचूत पाठ, लिटिया चुआं, सहित कुल 10 गांव गानी दारा, सहित अन्य गांव बदहाली की  दंश झेलती यह तस्वीर  सरकार और प्रसासन  विकास की दावे को मुह चिढ़ा रही है। हलाकि ग्रामीण आक्रोशित है। और चुनाव का बहिष्कार करने की बात कही है। 
            बता दे कि सरकार की  उदासीनता को लेकर गांव के लोग आज भी पौराणिक काल में जिवन को जी रहे हैं यहां के लोगों का जिंदगी आदिमानव के हाल का है।पूरे गांव को मिलाकर लोगो की आवादी लगभग 1500 सौ से 1600 के बीच है। पाठ और आस पास लगभग 10  गांव और भी है। गांव की  हालत अब बत से बत्तर हो गयी है। इस गांव में विलुप्त हो रही आदिम जननजाति  परिवार के लोग भी रहते हैं सरकार ने अदिनम जनजाति समुदाय के लोगो को डाकिया योजना के तहत खाद्य सामग्री घर तक पहुचा कर लाभुक को देने का पवधान किया है। लेकिन 15-20 किमी दूर जाकर राशन लाना पड़ता है। गांव में स्वास्थ्य सुविधा पुरी तरह से सुन्य है।
विडम्बना यह है कि यहां के लोग  बिमार पड़ जाएं तो बीमार व्यक्ति को खाट पर या गेड़ूवा के सहारे लगभग 20 किमी पैदल दूरी तैय कर स्वस्थ केंद्र पहुचते है। कई मरीज की इस दौरान मौत भी हो गयी है। 
        ---ज्ञात यह क्षेत्र भावी  नवताओ का गढ़ रहा है। ऊंचे अस्तर और अन्य  क्षेत्रीय नेता इशी गांव से आते है।   वही भावी नेताओ का पुश्तेनी घर भी है। पूरा क्षेत्र नेता जनप्रतिनिधि का गढ़ भी माना जाता है। लेकिन डुमरी प्रखण्ड के कई पंचायत और  गांव  बदहाली का दंस झेल रही है। एक और झारखण्ड राज्य  विकास की गाथा को पढ़ रही है। तो वही दूसरी ओर गुमला जिले के डुमरी प्रखण्ड का यह क्षेत्र राज्य सरकार और प्रसासन की पोल खोल रही है। 
------ इधर  मामले की जानकारी समाज कल्याल पदाधिकारी को हुई तो उन्होंने भरोसा को दिलाया है। साथ ही कहा कि  गांव में समस्या है। बहुत जल्द गांव में समस्या है। विभागीय स्तर पर पत्राचार कर हर सम्भव गांव में सुविधा को बहाल किया जायेगा जिससे मॉडल गांव की ओर अग्रसर होगा

--बहरहाल जो भी हो सुदूर व्रती गांव या शहर हो सरकार चौमुखी विकास की दावे कर रही है। वही दूसरी और चौमुखी विकास की यह तस्वीर साफ तौर पर  होने वाला गांव का विकास को मुह चिढ़ा रही है। सरकार को चाहिए कि इस दिशा में कार्य करने की जरूरत है। नही तो जनता गोलबंद होकर आंदोलन करेगी।