खरीददार के लाइसेंस की जिम्मेवारी विक्रेता के सिर  यह कहां का न्याय : कैट

खरीददार के लाइसेंस की जिम्मेवारी विक्रेता के सिर  यह कहां का न्याय : कैट

खरीददार के लाइसेंस की जिम्मेवारी विक्रेता के सिर  यह कहां का न्याय : कैट
खरीददार के लाइसेंस की जिम्मेवारी विक्रेता के सिर  यह कहां का न्याय : कैट

खरीददार के लाइसेंस की जिम्मेवारी विक्रेता के सिर  यह कहां का न्याय : कैट

KTG समाचार उदयभान पांडेय।ठाणे
केंद्र सरकार के एफएसएसआई विभाग ने परिपत्र जारी कर  1 अक्टूबर से सभी इनवॉइस,बिल चालान एवं रशीदो पर दुकानदार द्वारा बेची गई खाद्य सामग्री पर रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस नंबर लिखना अनिवार्य कर दिया है। वर्तमान में खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभिन्न माध्यमों से जन जागरूकता अभियान कर रहा है
लेकिन सरकार ने इसके बारे में हित धारकों को ना विश्वास में लिया है एवं ना उनको होने वाली समस्याओं के बारे में विचार किया है यह जानकारी अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महानगर इकाई के अध्यक्ष श्री शंकर ठक्कर ने दिया है।
आगे कहा खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से विभिन्न उपाय एवं योजनाएँ बनाई जा रही हैं। जहां खाद्य तेल के पुनर्चक्रण के लिए कार्रवाई की अवधारणा है, वहीं अब खाद्य सामग्री बेचते समय दी गई रसीद पर पंजीकरण और लाइसेंस नंबर लिखना अनिवार्य कर दिया गया है जिसके पीछे विभाग की मंशा शुद्ध खाद्य सामग्री ग्राहकों को मिले ऐसी है लेकिन यहां पर सवाल यह खड़ा होता है की विक्रेता हर बार खरीदार के लाइसेंस की अवधि समाप्त हो गई है या नहीं यह कैसे सुनिश्चित करते रहेगा क्योंकि कई मामलों में सरकार के अधिकारियों द्वारा लाइसेंस धारकों पर कार्यवाही कर लाइसेंस सस्पेंड करती है ऐसे में विक्रेता को इसके बारे में कैसे पता चलेगा और थोक विक्रेता 1 दिन के अंदर कई बिल बनाते हैं ऐसे में हर खरीदार के लाइसेंस की अवधि की जांच करना नामुमकिन होता है और विक्रेता के पास बिल बनाने के लिए मुनीम काम करते हैं जो इस तरीके के काम इतना ध्यान पूर्वक करेंगे यह भी आवश्यक नहीं होता है ऐसे समय पर गलती हो जाने पर विक्रेता को दंडित किया जाएगा यह कैसा न्याय है ? क्या सरकार एवं अधिकारि अपना  काम लाइसेंस धारकों के सिर पर धकेलना चाहती है ।
कैट के महानगर महामंत्री श्री तरुण जैन ने कहा व्यापारी इतने पढ़े लिखे भी नहीं है जो खुद कंप्यूटर पर इस तरह की  जानकारी उपलब्ध रख सकें और इसके लिए अलग से मुनीम लगाकर इस पर निगरानी रखें तो इसके लिए होने वाले खर्च का क्या ?
सरकार को इस कानून को तुरंत वापस लेना चाहिए अन्यथा लगाम बाबू ओ के हाथ में आ जाएगी जिससे व्यापारी प्रताड़ित होंगे और भ्रष्टाचार बढ़ने की संभावनाएं पैदा होगी।