सेड़ की मेड़ पर सुबह से स्त्री पुरुषों का पूजा अर्चना के लिए लगा रहा ताता
महिलाएं एक दिन पहले ही तरह तरह के पकवान बनाती हैं दूसरे दिन बासी भोजन का शीतला माता के भोग लगाती है
सेड़ की मेड़ पर सुबह से स्त्री पुरुषों का पूजा अर्चना के लिए लगा रहा ताता
KTG समाचार नीरज माहेश्वरी जिला प्रभारी
पुराना राजगढ़ सेड़ की मेड़ पर सुबह से स्त्री पुरुषों का ताता लगा रहा जिसमें उसने स्त्रियों ने माता की पूजा कर अर्चना करके अपने बच्चों और पति की सुख समृद्धि लंबी आयु की कामना की तथा साथ ही बच्चों ने भरपूर मेले में आज सुबह 3:00 बजे से ही स्त्री पुरुष बच्चों की भीड़ शीतला माता के पूजन के लिए उमड़ी रात्रि को जागरण हुआ जिसमें हजारों लोगों ने भाग लिया बच्चों ने गुब्बारे तथा खिलौने की खरीददारी की तथा जमकर आइसक्रीम खाई महिलाएं एक दिन पहले ही तरह तरह के पकवान बनाती हैं तथा दूसरे दिन बासी भोजन का शीतला माता के भोग लगाती है और अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करती है और शीतला माता के जयकारे से वहां का वातावरण गुंजायमान हो गया। जय शीतला मैया की। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक बार एक बुढ़िया और उनकी दो बहुओं ने शीतला माता व्रत किया। उन सभी को अष्टमी तिथि को बासी खाना खाना था। इसके चलते ही उन्होंने सप्तमी तिथि को ही भोजन बनाकर रख लिया था। लेकिन दोनों बहुओं ने को बासी भोजन नहीं करना था। क्योंकि उन्हें कुछ समय पहले ही संतान हुई थी। उन्हें लग रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि वो बासी भोजन करें और बीमार हो जाएं। अगर ऐसा हुआ तो उनकी संतान भई बीमार हो जाएगी। दोनों बहुओं ने बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा की। इसके बाद पशुओं के लिये बनाए गए भोजन के साथ ही अपने लिये भी ताजा भोजन बना लिया। फिर उसे ग्रहण भी कर लिया। फिर जब उनकी सास ने उन्हें बासी भोजन करने के लिए कहा तो उन्हें टाल दिया। यह कृत्य देख माता कुपित हो गईं और अचानक ही उनके नवजातों की मृत्यु हो गई। जब यह बात सास को पता चली तो उसने अपनी बहुओं को घर से निकाल दिया। दोनों अपने बच्चों के शवों को लिए रास्ते पर जा रही थीं। तभी वे एक बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुकीं। यहां पर दो बहनें थीं जिनका नाम ओरी व शीतला था। ये सिर में पड़ी जुओं से बेहद परेशान थीं। बहुओं को उनकी स्थिति देख उन पर दया आ गयी। उन्होंने उनकी मदद करनी चाही और उन बहनों के सिर से जुएं निकालीं। इससे उन दोनों बहनों को चैन मिल गया। उन बहनों ने बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए। यह सुन उन बहुओं ने कहा कि उनकी हरी गोद तो लुट गई है। तब उनमें से एक बहन जिनका नाम शीतला था, दोनों बहुओं को लताड़ लगाई और कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ता है। तब उन दोनों बहुओं ने माता शीतला को पहचान लिया। वे दोनों उनके पैरों में पड़ गईं और क्षमा मांगने लगीं। माता को उनके पश्चाताप करने पर दया आ गई और उन्होंने उनके मृत बालकों को जीवित कर दिया। यह देख वो खुशी-खुशी गांव लौट आयी। इसके बाद से पूरा गांव माता शीतला को मानने लगा।