*हरे भरे पेड़ों को बर्बाद कर सैंकड़ों रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन पर किया जा रहा है अतिक्रमण।*

जैसे जैसे जनसंख्या वृद्धि होती चली जाएगी वैसे वैसे आदमी अपनी जरूरत के लिए हर नियमों को तोड़ता चला जायेगा परन्तु ये नियम कुछ खास है अगर वन नहीं रहेंगे तो पृथ्वी पर रहने वाले हर प्राणी के लिए खतरा बनना स्वाभाविक है। इससे भी ज्यादा गंभीर अपराधी है बो आला अधिकारी जो पैसों के लालच में खुद के पैर भी कुल्हाड़ी मार रहे हैं।

*हरे भरे पेड़ों को बर्बाद कर सैंकड़ों रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन पर किया जा रहा है अतिक्रमण।*
वन में कटे पड़े पेड़।

*हरे भरे पेड़ों को बर्बाद कर सैंकड़ों रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन पर किया जा रहा है अतिक्रमण।*

एक ही रेंग में फिर से एक बार सरकारी रिजर्व जमीन में हरे भरे ब्रक्षों को काट कर जमीन को उपजाऊ बनाया जा रहा है। इससे पहले अमोल पटा के बरुआ गांव में वन विभाग की सैंकड़ों जमीन पर कब्ज़ा कर उसे उपजाऊ बनाया गया फिर उस पर खेती की जा रही है और ये वन विभाग के आला अधिकारिओं की नाक के नीचे चल रहा है। पैसे की ऐसी भूंक की फर्ज से जुदा कर रही है। सूत्रों के मुताबिक और बृजेंद्र सिंह की बाइट में कहा गया की रेंजर अनुराग तिवारी सरकारी ज़मीन के ठेकेदार बनकर सबसे पैसे लेकर खेती करवाते हैं। 

दूसरी ओर अमोला जाने वाले रास्ते में पड़ने वाला गांव छावन में वन विभाग की रिजर्व जमीन पर अतिक्रम कर हरे भरे पेड़ों को काटने का एक मामला सामने आया है। जानकारी के अनुशार यहां कम से कम 100 बीघा जमीन में खेती की जा रही है जो पूर्ण रूप से अवैध है क्यों कि वन विभाग की रिजर्व जमीन पर कब्जा तो छोड़ो बिना वन बिभाग की अनुमति के बगैर आप एक पेड़ की टहनी भी नहीं काट सकते।

 

*क्या कहता है वन संरक्षण अधिनियम 1980*=

वन्य जीव सरक्षण अधिनियम 1972 के बाद देखा गया कि वन्य जीवों की रहने की जगह जिसे उनका घर माना जाता रहा है बो बर्बाद हो रहा है और पृथ्वी के पर्यावरण का मुख्य हिस्सा वन होते हैं बिना वनों के वर्षा नहीं हो सकती ना पृथ्वी का वातावरण नियंत्रण हो सकता है। वनों से भूमी कटाव रुकता है इसलिए मानव जीवन के लिए और वन्य जीवों के लिए वनों का सुरक्षित होना अनिवार्य है इसके मद्दे नजर रखते हुए भारत सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम 1980 पारित किया जिसमें वन विभाग को तीन श्रेणी में बांटा गया रिजर्व फॉरेस्ट (नेशनल पार्क), अभ्यारण, अनरेसर्व फॉरेस्ट। जिसमें आप बिना वन विभाग की अनुमति के बगैर ना जा सकते ना पेड़ काट सकते। 

*क्या कहना है जिम्मेदारों का=*

जिम्मेदार अनुराग तिवारी रेंजर से जब इस विषय में बात की गई तो लगातार 2 दिन तक फोन ही नहीं उठाया जब दूसरे तीसरे पत्रकारों से कॉल कराया तब भी सत्ता धारियों की आड़ में सुरक्षित रेंजर ने फ़ोन नहीं उठा कर और ना ही रेंज में उपस्थित होकर बता दिया कि बो कितने जिम्मेदार अधिकारी हैं। जानकारी के अनुशार लोगों ने बताया सर जब आदमी खुद ही अतिक्रमण करा रहा हो तो ना सामने आयेगा ना आपका फोन उठाएगा। जानकारी यह भी बताती है कि रेंजर अनुराग तिवारी के कनेक्शन सत्ताधारियों नेताओं से जुड़े हुए हैं जो आज तक उन पर कार्यवाही नहीं होती।