सबका मान बढ़ाती हिन्दी - श्री कानूनगो
kTG समाचार लखन दास बैरागी देवास मध्य प्रदेश
देवास। प्रदेश सहित पूरे देश में 14 सितंबर से हिन्दी पखवाड़ा मनाया जा रहा है। हर कोई हिन्दी भाषा पर अपने विचार अलग-अलग ढंग से प्रस्तुत कर रहा है। इसी के अंतर्गत मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति इकाई देवास के जिला संयोजक श्रवण कुमार कानूनगो ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि भारत एक बहुभाषी देश है। स्वतंत्रता संग्राम के समय समूचे देश के प्रत्येक आंदोलन में किसी न किसी रूप में हिन्दी की उपस्थिति थी, और उपस्थिति का आधार भाषा नहीं होकर राष्ट्रीय भावना थी। सदैव से ही हिन्दी भारत की सम्पर्क भाषा रही है। हिन्दी भारत के अतीत को वर्तमान से संबद्ध करते हुए भविष्य का रूप और स्वरूप तय करती रही है। हिन्दी इस देश की अस्मिता, संस्कृति और पहचान है। देश की मूलभूत आवश्यकताओं में निजी राष्ट्र भाषा का विशेष महत्व है। जर्मनी, फ्रांस, चीन, जापान एवं रूस आदि देशों ने अपनी-अपनी भाषा के माध्यम से प्रगति एवं विकास के शिखर तक पहुंचने में सफलता पाई है। इतिहास गवाह है कि दुनिया का कोई भी देश किसी अन्य देश की भाषा में शिक्षा प्राप्त कर महाशक्ति नहीं बन पाया है। भारतीय संविधान सभा द्वारा 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गई। राजभाषा से तात्पर्य सरकारी कामकाज की भाषा होता है। हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी 15 वर्षों तक सरकारी कामकाज के लिए आधिकारिक भाषा का स्वरूप प्रदान किया। अंग्रेजी भाषा के लिए की गई यह व्यवस्था 15 वर्ष की समय अवधि पूर्ण होने के पूर्व ही आगे बढ़ा दी गई। जो आज तक यथावत रूप से लागू है। दुनिया में भारत जैसा शायद ही कोई देश होगा, जिसकी अपनी एक भाषा संवैधानिक तौर पर राजभाषा घोषित हो और विभिन्न प्रांतीय भाषाएं राज्यों की राजभाषा के रूप में प्रावधानिक हों, परन्तु उसका सामान्य कामकाज एक विदेशी भाषा से सम्पन्न होता हो, और वह भी ऐसी भाषा जिसके बोलने वालो का प्रतिशत 15-20 प्रतिशत से अधिक न हो। देश के पास अपनी निजी राष्ट्रभाषा नहीं है। हमारे पास राष्ट्रगान है, राष्ट्रीय ध्वज है, राष्ट्रीय प्रतीक है। राष्ट्रीय पशु और पक्षी है। किन्तु राष्ट्रभाषा नहीं है। स्वतन्त्रता आन्दोलन में अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वहन करने वाली एवं संविधान सभा द्वारा भारतीय संघ की घोषित राजभाषा हिन्दी 74 वर्ष के बाद भी देश की राष्ट्रभाषा नहीं हो पाई। वित संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने एवं वैश्विक मंच पर स्थापित करने हेतु भारत सरकार समय-समय पर विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन भी करती रही है। अभी तक नागपुर (भारत), पोर्ट लुई (मॉरीशस), नई दिल्ली (भारत), पोर्ट लुई (मॉरीशस), त्रिनिदाद और टुबेको, लंदन (ब्रिटेन), पारामारिबो (सूरीनाम), न्यूयॉर्क (अमेरिका), जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ्रीका), भोपाल (भारत), एवं पाई पोर्ट लुई (मॉरीशस) आदि जगहों पर विश्व हिन्दी सम्मेलन हो चुके है। विश्व हिन्दी सम्मेलनों का मुख्य उद्देश्य प्रचार-प्रसार के साथ हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाना एवं अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी का संवर्धन एवं परीक्षण रहा है। आज विश्व की प्रमुख भाषाओं की गणना में हिन्दी भी एक है। हिन्दी एक दिन भारत की राष्ट्रभाषा बनेगी, एक विदेश भाषा अंग्रेजी इस देश की राष्ट्रभाषा कभी नहीं बन सकेगी। स्वतंत्र भारत की सर्वमान्य भाषा हिन्दी ही इस देश की राष्ट्रभाषा होगी।