भगवान शिव की वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ का बोध होता है- पं. सूरज द्विवेदी

भगवान शिव की वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ का बोध होता है- पं. सूरज द्विवेदी

भगवान शिव की वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ का बोध होता है- पं. सूरज द्विवेदी

भगवान शिव की वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ का बोध होता है- पं. सूरज द्विवेदी।

KTG समाचार लखन दास बैरागी देवास मध्य प्रदेश


देवास। भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यंत सरल माना गया है। शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। उक्त उद्गार आवास नगर महिला मण्डल, बड़ी दुर्गा माता मंदिर समिति एवं संस्था श्री विनायक के संयुक्त तत्वाधान में आवास नगर स्थित बड़ी दुर्गा माता मंदिर में आयोजित नौ दिवसीय शिव महापुराण कथा के द्वितीय दिवस पं. सूरज द्विवेदी (शास्त्री) ने कहें। पं. मयंक द्विवेदी एवं मोंटी जाधव ने बताया कि शिवमहापुराण कथा सुन भक्त भाव विभोर हो उठे और सुमधुर भजनों झूम उठें। व्यासपीठ की आरती वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र पुरोहित, वार्ड 31 पार्षद विकास जाट, वार्ड 32 पार्षद प्रवीण वर्मा, शम्भु अग्रवाल, सतीष अग्रवाल, महेश शिवहरे, दिनेश पांचाल सहित भक्तजनों ने की। महाराज श्री ने आगे कहा कि भगवान शिव तो जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र -जीवन एवं कला के द्योतम हैं। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है। कथा 29 दिसम्बर तक प्रतिदिन दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक चलेगी।