रुद्र त्रिपाठी के कुछ मुखारविंद - "रिश्तों की जड़ें.........."

रुद्र त्रिपाठी के द्वारा कविता के माध्यम से रिश्तो की अहमियत को बताने की कोशिश।

रुद्र त्रिपाठी के  कुछ मुखारविंद - "रिश्तों की जड़ें.........."

KTG  समाचार नरेंद्र कुमार विश्वकर्मा सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश। 

सुलतानपुर-

रिश्तों की जड़ें..........
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कई रिश्तों की उम्र सिर्फ
हरे भरे पत्तों सी होती है
पत्तों के सूख जाने से ही
रिश्तों में दूरी सी होती है। 

रिश्तों को मजबूत जड़ों
से फिर निभाना होता है
समय के प्रवाह के साथ
निरन्तर खपाना होता है।

रिश्तों को सदा दिल की
गहराई से संवारने होते हैं
सतही रिश्तों में वादे भी
खोखले मनमाने होते हैं।

दस्तक का मकसद सिर्फ
दरवाजा खोलना होता है
रिश्तों में पसरी हुई जिद
की गांठें तोड़ना होता है।

कभी कुछ कह दिया तो
वह आत्मीय शब्द होते हैं
जो कुछ नहीं कहा जाता
अनुभूति निशब्द होते हैं।

लेखक:- रुद्र त्रिपाठी
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