डूंगरपुर:भलाइयों और दया के प्रतीक पिता संवेदनाओं के पुंज : के.के.गुप्ता
डूंगरपुर:भलाइयों और दया के प्रतीक पिता संवेदनाओं के पुंज : के.के.गुप्ता
पिता के पद चिन्हों पर समर्पित हो जीवन
KTG समाचार रिपोर्टर नरेश कुमार भोई डूंगरपुर राजस्थान डूंगरपुर।
नगरपरिषद के पूर्व सभापति के.के.गुप्ता ने "फादर्स डे" पर विचार साझा किए। गुप्ता ने कहा हमारा हर दिन, हर वक्त पिता के सम्मान में हों। हर पिता अपनी संतान को हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए हौसला बढ़ाते हैं। पिता से अच्छा मार्गदर्शक, हितैषी, गुरु कोई हो ही नहीं सकता। हर बच्चा अपने पिता से ही सारे गुण सीखता है जो उसे जीवनभर परिस्थितियों के अनुसार ढलने और लड़ने के काम आते हैं। उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। उनकी कुछ प्रमुख विशेषताएं उन्हें दुनिया में सबसे खास बनाती है जैसे- धीरज, संयम, अनुशासन, त्याग, बड़ा दिल, प्रेम, स्नेह एवं गंभीरता। मानवीय रिश्तों में दुनिया में पिता और संतान का रिश्ता अनुपम है, संवेदनाभरा है। कोई पिता कहता है, कोई पापा, अब्बा, बाबा, तो कोई बाबूजी, बाऊजी, डैडी कहता है। इस रिश्ते के कितने ही नाम हैं पर भाव सब का एक है। सबमें एक-सा प्यार, सबमें एक-सा समर्पण। ऋग्वेद की ऋचा में पिता को सभी भलाइयों और दया का प्रतीत बताया गया है। श्रीराम ने अपनी माता से पिता की महिमा बताते हुए कहा है कि पिता का स्थान देवताओं से भी श्रेष्ठ है और उनकी आज्ञा देवाज्ञा है। पिता ही पुत्रों को प्रारम्भिक शिक्षा देता है। जब वह स्वयं किसी विषय का पारंगत विद्वान होता था तो उस विषय की विशिष्ट शिक्षा भी वही देता था। अरूणेय स्वयं बड़ा विद्वान था, अतएव उसने अपने पुत्र श्वेतकेतु को भी विद्वान बना दिया। पिता का स्थान इतना आदरणीय है कि इसे अति गुरू की संज्ञा दी गयी है। इसे माता और गुरु की कोटि में रखा गया है। मनुस्मृति में भी कहा गया है कि ‘पिता मूतिर्रूप्रजापतयते अर्थात् पिता अपनी संतान के लिए आदर्श होता है। तैतिरीय उपनिषद् में समावर्तन समारोह के अवसर पर आचार्य स्नातकों को उपदेश देते हुए कहते हैं ‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव’ अर्थात् पिता और माता को देवता मानो। पिता हर संतान के लिए एक प्रेरणा हैं, एक प्रकाश हैं और संवेदनाओं के पुंज हैं। पिता गंगोत्री की वह बूंद है जो गंगा सागर तक एक-एक तट, एक-एक घाट को पवित्र करने के लिए धोता रहता है। पिता वह आग है जो घड़े को पकाता है, लेकिन जलाता नहीं जरा भी। वह ऐसी चिंगारी है जो जरूरत के वक्त बेटे को शोले में तब्दील करता है। वह ऐसा सूरज है, जो सुबह पक्षियों के कलरव के साथ धरती पर हलचल शुरू करता है, दोपहर में तपता है और शाम को धीरे से चांद को लिए रास्ता छोड़ देता है। पिता वह पूनम का चांद है जो बच्चे के बचपने में रहता है, तो धीरे-धीरे घटता हुआ क्रमशः अमावस का हो जाता है। पिता समंदर के जैसा भी है, जिसकी सतह पर असंख्य लहरें खेलती हैं, तो जिसकी गहराई में खामोशी ही खामोशी है। वह चखने में भले खारा लगे, लेकिन जब बारिश बन खेतों में आता है तो मीठे से मीठा हो जाता है।