शिवपुरी: तहसील और एसडीएम कार्यालयों में वर्षों से डले है दुरूस्ती प्रकरण, आवेदक लगा रहे हैं चक्कर, अब परेशान होकर आए जिला कलेक्ट्रेट: रिंकू पंडित KTG समाचार शिवपुरी

दुरूस्ती प्रकरण के वर्षों से डली फाइल जिन पर सुनबाई के नाम पर तारिक मिलती है और प्रार्थी आज तक बाबुओं द्वारा गुमाया जाता रहा है। कुछ तो ऐसी फाइल है जिनका आदेश होना पर भी बाबुओं को टाइम नहीं ऑर हर बार अगले सोमवार को आना वाले शब्दों से आदमी इतना परेशान हो जाता की कलेक्ट्रेट में आवेदक करना मजबूरी हो जाती है। आप खुद ही सोच सकते है आख़िर क्यों बाबू इतना गुमाते है जब साहब ने आदेश के ऑर्डर दे ही दिया है तो। आख़िर क्यों किसान को पटवारी जी एक गलती की सजा उसे सहबों के दप्तर के सालों चक्कर लगवाती है।

शिवपुरी: तहसील और एसडीएम कार्यालयों में वर्षों से डले है दुरूस्ती प्रकरण, आवेदक लगा रहे हैं चक्कर, अब परेशान होकर आए जिला कलेक्ट्रेट: रिंकू पंडित KTG समाचार शिवपुरी

शिवपुरी: तहसील और एसडीएम कार्यालयों में वर्षों से डले है दुरूस्ती प्रकरण, आवेदक लगा रहे हैं चक्कर, अब परेशान होकर आए जिला कलेक्ट्रेट: रिंकू पंडित KTG समाचार शिवपुरी

दुरूस्ती प्रकरण के वर्षों से डली फाइल जिन पर सुनबाई के नाम पर तारिक मिलती है और प्रार्थी आज तक बाबुओं द्वारा गुमाया जाता रहा है। कुछ तो ऐसी फाइल है जिनका आदेश होना पर भी बाबुओं को टाइम नहीं ऑर हर बार अगले सोमवार को आना वाले शब्दों से आदमी इतना परेशान हो जाता की कलेक्ट्रेट में आवेदक करना मजबूरी हो जाती है। आप खुद ही सोच सकते है आख़िर क्यों बाबू इतना गुमाते है जब साहब ने आदेश के ऑर्डर दे ही दिया है तो। आख़िर क्यों किसान को पटवारी जी एक गलती की सजा उसे सहबों के दप्तर के सालों चक्कर लगवाती है।

शिवपुरी: मामला रन्नौद तहसील के ग्राम सजाई हल्का नंबर 35, भूमी सर्वे नंबर 2268, र. न. 02 , प्रार्थी गण हमतवा, भग्गा, तिजया पुत्रगण खुसल जाटव के नाम से पूर्व में खसरा खतौनी में अंकित है परन्तु आज तारिक में अंकित नहीं है मेरी फ़ाइल की कोई सुनबाई नहीं है। इससे पहले पोहरी एसडीएम कार्यालय का प्रकरण क्र. 98 अ 6 अ, 2019-20 सामने आया था जिसमें प्रार्थी का सर्वे नंबर में नाम नहीं शो हो रहा जिसका वह आज दिनांक तक भू स्वामी है और उसने पुरानी खसरा खतौनी रिपोर्ट लगाई साथ में हर कानूनी प्रक्रिया करी जो बाबू ने कहा इसको ध्यान में रखकर सालों तक उसने तारिक पर तारिक की । अंत: उसका 3 साल में आदेश होना आया तो बाबुओं ने गुमा दिया कभी सर्वर के नाम पर तो कभी आचार संहिता के नाम पर तो कभी साहब नहीं है के नाम पर। 

आख़िर क्यों हो जाता है दुरूस्ती प्रकरण: शन 2012 में पटवारियों की नई भर्ती हुई तो उसमें पटवारियों को सर्वे कराकर फाइल से डाटा कंप्यूटर में अपलोड करना था, जो नए लड़के थे उन्हें पात्रता में कंप्यूटर डिप्लोमा अनिवार्य था। इसलिए वो डाटा फिट कर पाए परंतु जो पुराने पटवारी थे उन्हें कंप्यूटर का ज्ञान नहीं था और उन्होंने डाटा को ठेके पर चढ़ाने के लिए दुकानों पर दे रखा था दुकान वालों ने काम जल्दी खत्म करने के चक्कर में डाटा को थोड़ा बहुत गड़बड़ कर दिया किसी आदमी का नाम किसी की जमीन पर चढ़ा दिया तो किसी का सर्वे नंबर में नाम ही नहीं डाला। इस वजह से आजतक दुरुस्ती प्रकरण सालों से चले आ रहे हैं। जिन पर प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है और सीधा- साधा किसान आज दफ्तरों के चक्कर काट रहा है सुनवाई के नाम पर बस उसे 1 तारीख दी जाती है। कई दफ्तरों में तो बाबू ऐसे हैं की किसान को सही जानकारी भी नहीं देते और गुमराह करते हैं वह तब तक किसान को परेशान करते हैं जब तक किसान खुद नहीं बोल दे कि बस साहब रहने दो मैं थक गया हूं चक्कर लगा- लगा कर जो कुछ खर्चा- पानी देना हो वह बता दो।