वन संपदा के दोहन का भीभत्स नज़ारा, फार्म हाउसमालिकों ने हजारों बीघा में कर रखी है खैर की फैंसिंग: रिंकू पंडित KTG समाचार शिवपुरी
बन कटाई के जिम्मेदार बन रक्षक से लेकर अफसर, नेताओं के संरक्षण में। सब के सब मोन। नई भर्ती वाले बन रक्षकों को घर बैठने के देती है सरकार पैसे।
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जिला मुख्यालय से चंद किमी दूर था कभी खैर का जंगल अब बचे सिर्फ ठूंठ
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गुणवत्ता के हिसाब से लगभग पांच हजार प्रति -क्विंटल तक में बिकने वाली खैर की लकड़ी की तस्करी के लिए माफि या ने
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रिंकू पंडित KTG समाचार शिवपुरी :
वन सम्पदा के दोहन का यदि भयानक मंजर देखना है तो आप *शिवपुरी वन मंडल* की शिवपुरी और सतनवाडा रेंज में आइये ... यदि आपको वन और पर्यावरण से तनिक भी लगाव होगा तो आपकी आँखें यहाँ का मंजर देखकर नम हो जायेंगी । शासन से वन विकास के लिए तैनात अफ सर यहाँ नि न स्तर तक जाकर अवैध कृत्य करने वालों से उगाही में जुटे हैं एक भयावह मंजर जो हर गाँव वाले को नजर आया रहा है , प्रशासनिक अमले को दिखाई दे रहा है ,परन्तु वन अमले को नजर नहीं आ रहा है । वन अमले का आँखों पर पट्टी बांधकर बैठने का कारण सभी को समझ में आ रहा है ।
आपको बता दें गुणवत्ता के हिसाब से लगभग पांच हजार प्रति क्विंटल तक में बिकने वाली खैर की लकड़ी की तस्करी के लिए माफि या ने शहर से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर मोहनगड सब रेंज जंगल को लगभग खत्म कर दिया है। दो चार साल पहले तक यहां मिलने वाले खैर के बड़े पेड़ अब नजर तो आ रहे हैं पर वे कुल्हाडी से कटकर दबंग खेत स्वामियों और फार्म हाउस स्वामियों की तार फैंसिंग में लोहे के एंगल की जगह लगे हैं जड सहित उखाडकर इन्हें नष्ट कर दिया गया और जंगल में अब सिर्फ ठूंठ ही बचे हैं। जो ठूंठ हैं उन्हें भी जलाकर नामोनिशान मिटाए जा रहे हैं । स्थिति यह है कि आठ से दस इंच का तना मुश्किल में ही कहीं मिलता है। शिवपुरी से खैर की तस्करी करने वालों ने वन अमले को कुछ पैसों के लालच में लेकर इस क्षेत्र की पहचान रहा और का यह जंगल अब लगभग खत्म कर दिया है। शिवपुरी और सतनबाडा रेंज के कई खेतों पर खैर की लकडी खुलेआम तार फैंसिंग में लगी है । जो वन अमले को नजर नहीं आ रही
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के जिन पांच जिलों में खैर के पेड़ सबसे ज्यादा हैंए उनमें ग्वालियर की सिंहपुर रैंज और शिवपुरी जिला शामिल हैं और अगर देश की बात करें तो पूरे देश का 1.70 प्रतिशत खैर सिर्फ मध्यप्रदेश में है। अंतर राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ भी पेड़ों की जो प्रजातियां खतरे में हैं, उनमें खैर को भी शामिल किया है। इसके बावजूद इनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं और मैदान स्तर पर जिन वनकर्मियों पर सुरक्षा का दारोमदार है, वे भी अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहे हैं। स्थानीय लोगों द्वारा दिए जा रहे लालच ने अब लोगों के मन से डर निकाल दिया है।
शहर से सिर्फ 25 किमी दूर था कभी खैर का -जंगल, अब बचे सिर्फ ठूंठ
विची से सुरवाया फोरलेन पर आने के लिए जो सिंगल रोड है सड़क के किनारे बसे गांव और अंदर की ओर बसे मजरों की तरफ के लोग कुल्हाड़ी लेकर निकलते हैं। लकड़ी लेकर आने वाले इसी मार्ग को शहर तक लकड़ी भेजने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
*साइकलों से और ट्रेक्टरों से होता है परिवहन*
क्षेत्र के जंगल में जाने वाले लोग अवैध कटाई करके साइकल पर लादकर लकडियां लाते हैं। इन लकडिय़ों को शहर की आरा मशीन या फि र लकडियों की टाल पर भी बेचा जाता है।