सिंगरौली महोत्सव में रियाज़ रफीक़ के योगदान को नजर अंदाज करना बहुत बड़ा दुर्भाग्य होगा।

सिंगरौली महोत्सव में रियाज़ रफीक़ के योगदान को नजर अंदाज करना बहुत बड़ा दुर्भाग्य होगा।

सिंगरौली महोत्सव में रियाज़ रफीक़ के योगदान को नजर अंदाज करना बहुत बड़ा दुर्भाग्य होगा।

Ktg समाचार सिंगरौली एमपी हेड राजेश वर्मा

हमने स्विस घड़ी, जर्मन कारों और प्रौद्योगिकी की गुणवत्ता के बारे में बहुत कुछ सुना है। लेकिन वाक्यांश "सिंगरौली मेकैनिज्म" आपको कुछ विरोधाभासी लगता होगा। अफसोस सरहद पार भी जिस "सिंगरौली मेकैनिज्म" के शोध के चर्चे अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ वैज्ञानिकों के द्वारा प्रकाशित रिसर्च पेपर में किया गया है उसके बारे में स्थानीय लोगों को भी मालूम नहीं है। सिंगरौली पहले "काला पानी" के नाम से जाना जाता था । प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर सिंगरौली अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। सिंगरौली के प्रतिभाओं ने देश ही नहीं विदेश में भी अपना लोहा मनवाया है। वर्तमान में सिंगरौली को "ऊर्जा की राजधानी" के रूप में जाना जाता है। लेकिन इतिहास में आविष्कारकों एवं वैज्ञानिकों के योगदान सिंगरौली को एक नया पहचान दिलाने में मील का पत्थर साबित होगा। इसके लिए सिंगरौली के होनहार वैज्ञानिक एवं आविष्कारक रियाज़ रफीक़ ने अपने योगदान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सिंगरौली का नाम विश्वपटल में दर्ज कराने के लिए उनका पहल सराहनीय है। 

      

     रियाज़ ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रुड़की के एक अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में मोबाइल रोबोटिक्स टेक्नोलॉजी के लिये मेकैनिज़्म क्षेत्र में अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया था। वरिष्ठ वैज्ञानिकों के समीक्षकों के बोर्ड ने रियाज़ के रिसर्च पेपर को क्षेत्र में योगदान माना था। यह जानना यहां दिलचस्प होगा कि रियाज़ ने रिसर्च पेपर में अपने आविष्कार किये हुए इस मेकैनिज़्म का नाम "सिंगरौली 1.0" दिया है। जिसमे "1.0", इस मेकैनिज़्म का पहला संस्करण दर्शाता है। रियाज़ ने इसका एडवांस संस्करण डिज़ाइन कर लिया है। बहुत सारी खुबियों से लैस सबसे कम मोटर इस्तेमाल करने वाले इस रोबोटिक मशीन से अलग अलग सतहों और बड़े अवरोधों को आसानी से पार किया जा सकेगा। इसका इस्तेमाल रिमोट से निगरानी, पुलिस गश्त, सैन्य अभियान, आत्मघाती मिशन और अंतरिक्ष में अन्वेषण के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है। इस शोध को रियाज़ ने अपने व्यक्तिगत संसाधनों से अकेले किया है।  

     रियाज़ के इसी रिसर्च पेपर को बाद में उत्तरी अमेरिका की युनिवर्सिटी और संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण मध्य क्षेत्र के टेक्सास युनिवर्सिटी में कार्यरत अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के टीम ने बाकायदे आधार बना कर उनके काम को आगे बढ़ाया है। और फिर तीन रिसर्च पेपर प्रकाशित किया है। उन्होंने अपने रिसर्च पेपर में माना है कि रियाज़ ने अपने रोबोटिक मशीन में मेकैनिज़्म से सभी आवश्यक डिज़ाइन फीचर को हासिल किया है। उनके शोध कार्य को वहां के उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा वित्त पोषित किया गया था। वहीं नेशनल ताइवान युनिवर्सिटी के लैब में कार्यरत वरिष्ठ वैज्ञानिकों के टीम ने रियाज़ के इसी रिसर्च पेपर को संदर्भ में लिया है। और फिर उन्होंने एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया है जिसमें अपने डिजाईन की तुलना रियाज़ के डिजाईन से की है। वे पिछले एक दशक से ज्यादा समय से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उनके शोध कार्य को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, ताइवान द्वारा वित्त पोषित किया गया था। 

       मौलाना आज़ाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, भोपाल के एक राष्ट्रीय कांफ्रेंस में मेकैनिज़्म क्षेत्र में रियाज़ के प्रस्तुत किये हुए एक दूसरे रिसर्च पेपर को बेस्ट रिसर्च पेपर अवार्ड से नवाजा जा चुका है।  

      

         रियाज़ रफीक़ ने शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के जीवन को आसान बनाने और उन्हें चलने फिरने में आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने व्यक्तिगत संसाधनों, धन और दस साल से अधिक समय का निवेश कर "सीढ़ी चढ़ने वाला व्हीलचेयर" का आविष्कार कर और फिर पेटेंट प्राप्त कर पहले ही तमाम अखबारों कि सुर्खियां बटोर चुके हैं। पेटेंट मिलने पर रियाज़ रफीक़ का साक्षात्कार ऑल इंडिया रेडियो, आकाशवाणी भोपाल द्वारा प्रसारित किया गया था। रियाज़ रफीक़ मेकैनिकल मेकैनिज़्म के क्षेत्र में प्रदेश के पहले आविष्कारक हैं जिन्हें भारतीय पेटेंट ओफिस से पेटेंट मिला है। और सभी क्षेत्रों में बतौर व्यक्तिगत आविष्कारक रियाज़ रफीक़ सिंगरौली जिला के पहले आविष्कारक हैं। 

दुसरे क्षेत्रों के मुकाबले हमारे देश में मेकैनिकल मेकैनिज़्म के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक और शोधकर्ता बहुत ही कम हैं। संसाधनों और सुविधाएं के अभाव में आज प्रतिभाशाली वैज्ञानिक और आविष्कारक गुमनामी के अंधेरे में रहने को मजबूर हैं।

 

       सिंगरौली महोत्सव जो कि नगर गौरव दिवस की तरह मनाया जाना है उसमें अगर प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन रियाज़ रफीक़ को विज्ञान रत्न पुरस्कार से सम्मानित एवं विभूषित करने के बजाये अगर नज़र अंदाज़ करते हैं तो यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य होगा। जिन प्रतिभाओं का हम सम्मान करेंगे हमारी नई युवा पीढ़ी उन्हीं को अपना आदर्श मानती हैं और उस राह का अनुकरण करने की कोशिश करती हैं। अब देखना यह है कि प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन क्या रुख इख़्तियार करती हैं और ऐसे व्यक्तिगत आविष्कारक एवं वैज्ञानिक प्रतिभाओं का कब सुध लेती हैं। क्योंकि इसी से यह तय हो जायेगा कि युवा पीढ़ी किस चीज से प्रेरित होंगे और देश को अपना योगदान किस तरह से देंगे।