*पोहरी विधान सभा चुनावी हलचल, सर्वे समीकरण के अनुशार किसका पल्ला भारी।*

हमारे आंकड़े आप सब लोगों के बीच से बनाए गए हैं जिसमें लगभग 99% सत्य होने की संभावना है। इस रिर्पोट को पड़ने के बाद आप घर बैठ कर पोहरी विधान के आगामी चुनाव का आंकलन कर सकते हैं। कुछ नेताओं को सायद हमारे आंकड़े और रिर्पोट गलत लग सकती है क्यों कि जो प्रत्याशी होता है और जिसका प्रत्याशी होता है बो सदैव आंख बंद करके जीता ही महसूस करता है। आंखे तो उसकी रिजल्ट के बाद ही खुलती हैं।

*पोहरी विधान सभा चुनावी हलचल, सर्वे समीकरण के अनुशार किसका पल्ला भारी।*
पोहरी विधान सभा! टिकेट के दावेदारों की फाइल फोटो।

KTG समाचार क्या कहती है रिंकू पंडित ब्यूरो रिपोर्ट= 

हम ही नहीं अपितु मध्य प्रदेश की (छोटे बड़े नेताओं को छोड़) जनता पूरी तरह जानती है कि इस बार मामा के गले में जीत को लेकर घंटी लटकी हुई है। क्योंकि पिछली सरकार कांग्रेस की थी और किस तरह मध्य प्रदेश में बीजेपी ने सरकार गिरा कर बीजेपी स्थापित की। यानि की बोला जाए कि जनता ने मामा की सरकार को नकार दिया था तो ये कहना कतई मिथ्या साबित नहीं होता। जिसका मुख्य कारण मंहगाई, बेरोजगारी, और बड़ता हुआ भ्रष्टाचार भी था फिर मामा की सरकार में ब्यापम घोटाला हुआ जिससे प्रदेश का युवा चिढ़ गया और युवा सक्ति भी विरोध में आ उतरी बही हालत आज भी बन रहे हैं। चर्चा में रहे पटवारी घोटाले से किसी की निगाहें अछूती नहीं रही हैं। हालाकी शिवराज सरकार प्रदेश पर कर्जा डाल कर घोषणाओं और योजनाओं का फायदा दे रही है परंतु समझदार जनता जानती है कि प्रदेश को कर्जे में डाल कर सरकार आम जनता पर महगाई और बड़ाने की कोशिश कर रही है दूसरी ओर विपक्ष में बैठी कांग्रेस सरकार सत्ता में आते ही महलाओं को 1500 रू मंथली और 500 रु सिलेंडर देने का लॉलीपॉप दे रही है। परंतु 100 बात की एक बात की इस बार बीजेपी का मध्य प्रदेश आना मुश्किल नजर आ रही है। हां अगर सीएम का चेहरा बदल दिया जाए तो फिर भी भाजपा बापीसी कर सकती है। अब सबको छोड़ कर आते हैं अपनी विधान सभा पर=  

पोहरी विधान सभा में जातिबाद का ज़हर घोल कर गांव के आपसी भाईचारे को खत्म करने जाति के नेता 5 साल तक रेबड़ी खाते हैं फिर 5 साल बाद नजर आता है कि हम कोंन सी जाती के हैं। अब फिर से जाति जाति खेलें फिर से बोट बटोरें। 

पोहरी विधान सभा= चर्चा का विषय बनी हुई पोहरी विधान सभा में अब तक देखा जाए तो जातिगत चुनाव होता आ रहा है जिसमें दो मुख्य जाति ब्राह्मण और धाकड़ मुख्य रूप से मानी गई हैं जिनके अब तक विधायक बनते आए हैं। पोहरी विधान सभा में पार्टी ना देखते हुए जाति देख कर वोट डाले जाते हैं। हर जाति अपनी जाति के प्रत्याशी को जिताने में अपना तन, मन, धन झोंक देती है। कुछ समय के लिए तो ऐसा लगता है जैसे वोटर खुद अपना चुनाव लड़ रहे हों। परंतु भोले भाले वोटरों को जाति बाद जहर देकर, उन पर राज्य करने वाले नेता, उन्हे आपस में लड़ा कर, कई वादों को निभाने, चुनाव होते ही गांव के तरफ नजर नहीं आते। वोटर चुनावी माहौल में इस तरह लीन हो जाते हैं कि वो ये भी नहीं सोच पाते कि अब तक किस जाति के किस नेता ने अपनी जाति के उत्थान के लिए काम किया है जो हम आज इनके लिए लड़ रहे हैं। 

*जातिगत समीकरण*

पोहरी विधानसभा सीट पर मुद्दों की बजाय जातिगत समीकरण हावी रहते हैं और यहां जातिगत आधार पर ही वोटिंग होती है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां 5 बार ब्राह्मण समुदाय के कैंडिडेट और 5 बार धाकड़ समुदाय के प्रत्याशी चुनाव जीते हैं। इस सीट पर कुल मतदाता लगभग 2 लाख 15 हजार 517 हैं जिसमें धाकड़ जाति के मतदाता 50 हजार, ब्राह्मण जाति के मतदाता 35 हजार, आदिवासी वर्ग के 30 हजार मतदाता, जाटव मतदाताओं की संख्या 20 हजार, कुशवाह मतदाताओं की संख्या 20 हजार, यादव समुदाय के मतदाताओं की संख्या 12 हजार और रावत समुदाय के मतदाताओं की संख्या करीब 10 हजार है। राजनीतिक दल जातिगत आधार को देखते ही अपने उम्मीदवार मैदान में उतारते हैं और इसलिए यहां बीएसपी का भी अच्छा खासा असर देखने को मिलता है।

*बारी बारी खोलते हैं सबकी पोल, विधायक के दावेदारों के प्रति जनता के हैं कैसे बोल* 

जिस विधान सभा में जिसकी सरकार हैं उसके क्या हैं हाल तो बात करते हैं सिंधिया के प्रसाद पर्योंत कृपा प्राप्त पीडब्ल्यूडी मंत्री एवं भाजपा विधायक सुरेश धाकड़ रांठखेड़ा की तो इस बार जनता के बीच उनका रवैया कुछ खास नजर नहीं आ रहा मानो उनकी जाति के ही लोग उनसे रूठे नजर दिखाई दे रहें हैं। अन्य समाज भी उनको खास तज्जूबुर नहीं दे रही है क्यों कि विधायक के बाद सीधा मंत्री बनना पोहरी विधान सभा के लिए गौरव भरी बात मानी जा रही थी परंतु जिस तरह की उम्मीद मंत्री जी से जनता कर रही थी बो उनपर खरे उतरते नजर नहीं आए। वादों की बात करें तो पोहरी सरकुला डैम का वादा करने वाले मंत्री अपने वादों को तो छोड़ो पूर्व विधायक प्रहलाद भारती के कामों का भूमी पूजन करते नजर आए परंतु अपने सगे संबंधियों और रिश्तेदारों के चलते उन्होंने अन्य समाज से काफी विरोध बना लिए जिनमें उनके परिजनों पर मार पीट, बलात्कार के गंभीर आरोप प्रत्यारोप लगाए गए हैं दूसरी ओर चर्चा में रहे उनके समधी जो नशा मुक्ति अभियान में नशे में धुत्त सवर्ण जाति को गाली देने का विडियो चर्चा में बना रहा जिससे सवर्ण समाज काफी नाराज नजर आ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक माना ऐसा जा रहा है कि इस बार बीजेपी विधायक का टिकेट मिलना मुश्किल हो सकता है। खुशी की बात मंत्री जी को ये भी हो सकती है अगर कांग्रेस से प्रद्युमन सिंह को टिकेट नहीं मिला तो बाहुल्य वोटर धाकड समाज की मजबूरी बन सकती है मंत्री रांठखेड़ा को जिताना। साथ ही मंत्री जी पर दलबदलू का टैग तो लग ही चुका है इसके साथ बिकाऊ का भाषण ये खुद दे चुके हैं जिसमें मंत्री जी कहा था "हां मैं बिका हूं परंतु जनता के लिए उसके बिकास के लिए" अब मैं बिक कर देखो पोहरी विधान सभा का कैसा बिकास करता हूं। कुछ गांव तो ऐसे हैं जिनमें मंत्री जी का खुल्ला विरोध देखने को मिला है जैसे गोंदोलीपुरा जिसमें पिछली चुनाव में मंत्री जी नदी के पुल का आश्वाशन देकर आज तक लोटे नहीं जिससे वहां के गांव जनता काफी नाराज नजर आ रही है। पोहरी विधान सभा के जाखनोद गांव में भी मंत्री जी का खुल्ला विरोध देखने को मिला साथ ही पोहरी विधान सभा का नरवर जिसमें नेताओं को मात्र चुनावी माहौल में नरवर नज़र आता है। कई वर्षों की तपस्या के बाद नरवर को जाने वाले रोड का निर्माण हुआ गौर तलब यह है कि आनन फानन से रोड तो बन गया परंतु रोड आज खुदने की स्थिति में है और कई पुलिया आज भी अधूरी पड़ी हैं।

*पूर्व विधायक प्रहलाद भारती की क्या है ओपेनयन पोल* 

सरल सहज मिलनसार व्यक्तित्व के धनी भाजपा के पूर्व विधायक एवं राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त प्रहलाद भारती की छबि साफ सुधरी रही है जिन्होने हर समाज में अपना स्थान बनाया है। शायद इस वजह से लोग उन्हें ज्यादा पसंद करते हैं अगर प्रहलाद भारती भाजपा से मैदान में उतरते हैं तो जीत के आसार जरूर नजर आते हैं परंतु ये तभी संभव है जब भाजपा पूर्व विधायक एवं राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त नरेन्द्र विरथरे को संभाल कर रखे अगर ये भाजपा से रूठे और निर्दलीय चुनाव में उतरे तो भारती के लिए मुस्किले खड़ी कर सकते हैं। 

*क्या कहते हैं पूर्व विधायक एवं राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त नरेन्द्र विरथरे के आंकड़े*

भाजपा के पूर्व विधायक एवं राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त नरेन्द्र विरथरे भी टिकेट के प्रबल दावेदारी कर रहें हैं। नरेन्द्र गिरथरे के कार्यकाल की बात करें तो इनका कार्यकाल भी साफ सुधरा, स्वच्छ छवि को प्रदर्शित करता है। इनकी छवि एक दवंग नेता के रूप में रही है जिसके चलते इनके कार्यकाल में काफी हद तक भ्रष्टाचार थमा हुआ था। सूत्रों से ये यह भी ख़बर मिली है अगर भाजपा नरेंद्र बिरथरे को टिकेट नहीं देती तो निर्दलीय मैदान में उतर सकते हैं। अगर भाजपा से प्रहलाद भारती या सुरेश धाकड़ रांठखेडा मैदान में उतरे और कांग्रेश से प्रद्युमन सिंह वर्मा तो जातिगत समीकरण के आधार पर कुर्सी ले सकते हैं नरेंद्र बिरथरे। वहीं अगर प्रद्युम्न वर्मा कोंग्रेस से और बीजेपी से नरेन्द्र विरथरे मैदान में उतरे तो नरेन्द्र विरथरे के जीतने के आसार काफी हद तक बने हुए हैं। 

*भाजपा में और कोन ठोक रहा है टिकेट की दावेदारी*

सूत्रों के हवाले जानकारी यह भी मिली है कि यशोधरा राजे सिंधिया के करीबी एवं खास माने जाने वाले भंडारा स्पेशलिस्ट दिलीप मुदगल भी अपने आप को विधायक के दावेदार मान बैठे हैं लेकिन जनता के बीच से इनका जीत का आसार ना के बराबर ही ही नजर आता दिखाई दे रहा है। 

दूसरी ओर बीजेपी के युवा नेता सोनू बिरथरे अपनी दावेदारी दे रहे हैं हालाकि युबाओं में इनका प्रभाव भले ही देखने को मिल रहा है परंतु जीत की दावेदारी करना उचित नहीं होगा। 

*बात करते हैं विपक्ष पार्टी कांग्रेस की*

विपक्ष पार्टी कांग्रेस में जितनी टिकट के लिए घमासान मचा हुआ है सायद उतनी तो बीजेपी में भी नहीं होगा क्यों कि हर छोटा बड़ा नेता अपने निजी स्वार्थ के लिए या संपत्ति बचाने के लिए बीजेपी के दामन को थामे हुए है जिससे बीजेपी में नेता इतने भर चुके हैं कि छोटे नेताओं की कोई पूछ नहीं रही इसका एक कारण अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का बीजेपी में पलायन भी है। 

*कांग्रेस में कोन निकाल सकता है भाजपा के खेमे से शीट*

यूं तो कहना आसान नहीं होगा क्यों कि भाजपा साम, दाम, दण्ड, भेद की राजनीति से भली भांति निपुण है बाजपा के गड़ से शीत निकलना लोह के चने चवाने के बराबर होगा फिर भी जनता के बीच से उठकर प्रबल दावेदार प्रद्युमन सिंह वर्मा निकल कर सामने आ रहे हैं जो जातिगत समीकरण और स्वच्छ छवि को प्रदर्शित करते हैं अगर बात करें तो ये निजी स्वार्थ के लिए दल बदलू भी नहीं है सिंधिया के खास रहे प्रद्युम्न वर्मा ने विषम परिस्थिति में भी कांग्रेस का दामन नहीं छोड़ा जबकि उनके बड़े नेता सिंधिया का कांग्रेस में पलायन होने के बाद भी वे निष्ठा के साथ कांग्रेस में बने रहे। प्रद्युमन सिंह वर्मा पर समाज से बेदाग का टैग तो लगा ही हुआ है साथ में पूर्व जनपद अध्यक्ष भी रह चुके हैं। यूनियन पोल और जनता के बीच से हमारे आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस की झोली में जीत मात्र एक चहरा प्रद्युमन ही डाल सकते हैं जो पोहरी विधान सभा में कांग्रेस की बापसी कर सकते हैं। 

*बीएसपी का दामन छोड़ टिकट के लिए कांग्रेस का दामन थामने वाले कैलाश कुशवाह के क्या हैं आंकड़े*

दो बार अपनी किस्मत आजमाने बाले कैलाश कुशवाह ने कांग्रेस में बापिसी की है जिसके चलते बो लगातार जन संपर्क में नजर आ रहे हैं। कैलाश कुशवाह मान कर बैठे हैं कि टिकट उनकी झोली में है। बात करें उनके चुनावों की तो पहले चुनाव में ब्राह्मण बोटरों के सहारे कम बोटों से चुनाव हारे यानि कि जाटव, कुशवाह, ब्राह्मण बोटरों के सहारे भी बो अपनी जीत सुनिश्चित नहीं कर पाए। दूसरे चुनाव में भी उन्हें हरिबल्लभ शुक्ला के चलते हार का सामना करना पड़ा। इस वजह से कैलाश कुशवाह के समीकरण पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। 

प्रद्युमन वर्मा और कैलाश कुशवाह के अलावा कोंग्रेस में टिकट की दावेदारी करने वाले दो अन्य चेहरे राघवेंद्र तोमर गुड्डू भैया जिनको उनके करीबी ही जानते हैं जनता के बीच इनकी कम ही जान पहचान है और पोहरी के युवा नेता शिवांश जैमनी जो युवाओं के कुछ हद तक चहेते माने जाते हैं।  ये भी टिकट की दावेदारी ठोक रहे हैं परंतु ये दोनों नेता जीत हार की होड़ में काफी दूर हैं।