मित्र हो तो सुदामा जैसा हो वरना मित्र न हो - पंडित इंद्रेश उपाध्याय

मित्र हो तो सुदामा जैसा हो वरना मित्र न हो - पंडित इंद्रेश उपाध्याय

मित्र हो तो सुदामा जैसा हो वरना मित्र न हो - पंडित इंद्रेश उपाध्याय
मित्र हो तो सुदामा जैसा हो वरना मित्र न हो - पंडित इंद्रेश उपाध्याय
KTG समाचार लखन दास बैरागी देवास मध्य प्रदेश
देवास। सुदामा का अर्थ दिन हीन या गरीब ब्राह्मण से नही है सु अर्थ है सुंदर और दामा का अर्थ है धन सुंदर धन ऐसा धन जो अनीति से कमाया गया नही हो वो सुदामा है। सुदामा के कारण द्वारिका नाथ राजा है सुदामा जी ने श्री कृष्ण के लिए गरीबी प्राप्त की है। जब सांदीपनि आश्रम में गुरु मा से दक्षणा लेने एक ऋषि पधारे तो गुरु मां ने उन्हें यह सोच कर उन्हे दक्षण देने से मना किया कि अगर ये बचे दो मुट्ठी चने भी इन्हे देदिए तो कृष्ण सुदामा जंगल में भूखे रहे मगर ऋषि जानते थे कि अन्न होते भी मना कर रही है तो उन्होंने श्राप दिया कि ये चने खायेगा वो दरिद्र हो जाएगा सुदामा जी ने ऋषि के श्राप को सुन लिया था और उन्होंने कृष्ण के हिस्से के चने खाए कि कही मेरा मित्र दरिद्र नही होजाए मित्र के प्रति भाव हो  तो सुदामा जैसा वरना मित्र न हो । यह आध्यात्मिक विचार मेंडकी की रोड पर कलश गार्डन में हो रही श्रीमद् भागवत कथा की विश्रांति अवसर पर अध्यात्म  प्रवक्ता पंडित जी इंद्रेश उपाध्याय में व्यक्त किए। गुरुवार को प्रातः 7.30 बजे कथा हुई जिसमे भी सैकड़ों महिला पुरुष कथा श्रवण पहुंचे । कथा विश्रांति पर कथा आयोजक शंकर शर्मा और उनका परिवार भाउक होगए उन्हे देख कर श्रोताओं  की आंखे भर आई। इस अवसर पर कृष्णकांत शर्मा ने आभार गीत प्रस्तुत श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ।संचालन चेतन उपाध्याय ने किया पीयूष शर्मा आभार प्रकट किया।