मेकैनिकल मेकेनिज़्म के क्षेत्र में प्रदेश का पहला आविष्कारक सिंगरौली का बेटा रियाज़ रफ़ीक
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मेकैनिकल मेकेनिज़्म के क्षेत्र में प्रदेश का पहला आविष्कारक सिंगरौली का बेटा रियाज़ रफ़ीक
अभियंता दिवस पर विशेष
केटीजी समाचार सिंगरौली
राजेश वर्मा
क्यों मनाया जाता है इंजीनियर्स डे
भारत सरकार द्वारा साल 1968 में भारत के महान अभियंता और भारत रत्न डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जन्मतिथि को 'अभियंता दिवस' घोषित किया गया था। 15 सितंबर 1860 को डॉ. विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले में हुआ था। वह भारतवर्ष के ब्रिटीश शसनकाल के दौरान महानतम इंजीनियर थे। इंजीनियर्स डे (अभियंता दिवस) मनाने का लक्ष्य हमारे देश के युवाओं को इंजीनियरिंग के करियर के प्रति प्रेरित करना है और जिन इंजीनियरों ने हमारे देश के उत्थान में अपना योगदान दिया है उनकी सराहना करना है।
पेटेंट किसे कहते हैं
अपने उत्पाद या तकनीकी पर पेटेंट लेने के लिए पेटेंट कार्यालय में अर्ज़ी दें और साथ ही अपनी आविष्कार का ब्यौरा दें। उसके बाद पेटेंट कार्यालय उसकी जांच करेगा और अगर वह उत्पाद या तकनीकी या विचार नया है तो पेटेंट का आदेश जारी कर देगा। पेटेंट हेतु आवेदन सही एवं प्रथम आविष्कारक अथवा उसके प्रतिनिधि द्वारा किया जा सकता है। और संस्था या उसके प्रतिनिधि द्वारा किया जा सकता है या संयुक्त रुप से भी किया जा सकता है।
*रियाज़ रफीक़ व्यक्तिगत आविष्कारक :-*
ज्यादातर पेटेंट हेतु आवेदन संस्था ही करती है। संस्था अपने इंजीनियर एवं वैज्ञानिकों को शोध एवं आविष्कार के लिये पुरी आवश्यक सुविधा और संसाधन मुहैया कराती है । लेकिन व्यक्तिगत आविष्कारक अपने सिमित संसाधन से शोध एवं आविष्कार करते हैं। जो बात रियाज़ रफीक़ को औरों से अलग करती है वह यह है कि रियाज़ ने बतौर व्यक्तिगत आविष्कारक मध्यप्रदेश में सबसे पहले मेकैनिकल मेकेनिज़्म के क्षेत्र में आविष्कार कर सफलतापुर्वक पेटेंट प्राप्त किया। रियाज़ रफीक़ वैढ़न, जिला सिंगरौली, मध्य प्रदेश के निवासी हैं।
*रियाज़ का आविष्कार जिस पर मिला पेटेंट :-*
रियाज़ ने शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के जीवन को आसान बनाने और उन्हें चलने फिरने में आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने व्यक्तिगत संसाधनों, धन और दस साल से अधिक समय का निवेश कर "सीढ़ी चढ़ने वाला व्हीलचेयर" का व्यापक शोध कर आविष्कार किया और फिर पेटेंट प्राप्त किया है। इस व्हीलचेयर में लगे खास मेकेनिज्म के वजह से सामान्य सतहों पर जा सकते हैं और बिना किसी सहायता के स्वचालित रूप से सीढ़ियां भी चढ़ सकते हैं। उपयोगकर्ता को केवल व्हीलचेयर को चलाने के लिए कंट्रोल पैनल से सिर्फ दिशा चुनना होगा। यह अलग अलग आकार के सीढ़ियों पर भी असानी से चलेगी।
*कहाँ से मिली प्रेरणा :-*
वर्ष 2002 में भोपाल रेलवे स्टेशन पर जब एक पैर से अपाहिज व्यक्ति को घसीटते हुए बहुत ही परेशानी से स्टेशन की सीढीयां चढते हुए देखा तो बेचैन हो गए। तभी उन्होंने फैसला कर खुद से वादा किया कि विकलांग लोगों के लिए उनके आत्मविश्वास और आत्म-निर्भरता को बढ़ाने के लिए कुछ नवीन समाधान के लिए शोध करेंगे। ताकि वे सामान्य आबादी के साथ जुड़ सकें और उत्पादक जीवन जीते हुए सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों में समान रूप से भाग ले सकें ताकि वे भी राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकें। रियाज़ का कहना है कि मेरा यह व्हीलचेयर विश्व स्तर पर आत्मनिर्भर भारत की छवि का प्रचार करेगी। अपने पैर गंवा चुके वयोवृद्ध सैनिक भी इस व्हीलचेयर से लाभान्वित हो सकते हैं।
*क्यों अहम है मेकैनिकल मेकेनिज़्म?*
औद्योगिक क्रांति के दौरान मेकैनिकल मेकेनिज़्म ने बहुत अहम योगदान दिया था और मशीनिकरण के वजह से ही कारखानों में माल के उत्पादन के तरीके में कई बदलाव हुए और हाथ से बनने वाली वस्तुओं की तुलना में तेजी से और सस्ती वस्तुओं का उत्पादन होने लगीं थीं। आज मेकेनिज़्म का उपयोग औद्योगिक रोबोट, रोबोटिक सर्जरी, अंतरिक्ष अन्वेषण, रोबोटिक वाहन, मशीन, ऑटोमोबाइल और कारखानों आदि में किये जाते हैं। दुसरे क्षेत्रों के मुकाबले हमारे देश में मेकैनिकल मेकेनिज़्म के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक और शोधकर्ता बहुत ही कम हैं।
*अब तक का सफरनामा:-*
मौलाना आज़ाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी भोपाल के एक राष्ट्रीय कांफ्रेंस में रियाज़ के प्रेजेंट किये हुए एक रिसर्च पेपर को बेस्ट रिसर्च पेपर अवार्ड से नवाजा जा चुका है। उन्होंने अपने इस रिसर्च पेपर में चलने वाले रोबोट के पैर के लिये मेकेनिज़्म डिज़ाइन किया है जिसमें एक पैर के लिये सिर्फ एक मोटर का इस्तेमाल कर लगभग जानवरों जैसा चाल हासिल किया है। रियाज़ ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रुड़की के एक अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में मोबाइल रोबोटिक्स टेक्नोलॉजी के लिये मेकेनिज़्म क्षेत्र में अपने रिसर्च पेपर प्रेजेंट किया था। वरिष्ठ वैज्ञानिकों के समीक्षकों के बोर्ड ने इसे क्षेत्र में योगदान माना था। बाद में इसी शोध को दुनिया के नामचीन अंतरराष्ट्रीय लैबोरेट्री में कार्यरत वैज्ञानिकों ने संदर्भ में लेकर रियाज़ के काम को आगे बढ़ाया है। और अपने रिसर्च पेपर में माना है कि रियाज़ ने अपने मेकेनिज़्म से सभी आवश्यक डिज़ाइन फीचर को हासिल किया है। यह जानना यहां दिलचस्प होगा कि रियाज़ ने रिसर्च पेपर में इस मेकेनिज़्म का नाम "सिंगरौली 1.0" दिया है। जिसमे "1.0", इस मेकेनिज़्म का पहला संस्करण दर्शाता है। रियाज़ ने इसका एडवांस संस्करण डिज़ाइन कर लिया है। इस रोबोटिक मशीन से अलग अलग सतहों और बड़े अवरोधों को आसानी से पार किया जा सकेगा। इसका इस्तेमाल रिमोट से निगरानी, पुलिस गश्त, सैन्य अभियान, आत्मघाती मिशन और अंतरिक्ष में अन्वेषण के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है। अब तक रियाज़ ने मेकेनिज्म, रोबोटिक टेक्नोलोजी और नए प्रोडक्ट डिजाईन के क्षेत्र में सात आविष्कार किया है और पेटेंट के लिए आवेदन किया है।
*शिक्षा :-*
शुरुआति स्कूल की शिक्षा संत जोसेफ कोन्वेंट स्कूल वैढ़न से किया है। उसके बाद उन्होनें शासकीय पोलिटेक्निक वैढ़न से डिप्लोमा मेकेनिकल इंजीनियरिंग और फिर लक्ष्मी नारायण कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, भोपाल से मेकैनिकल इंजीनियरिंग में बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग कि पढ़ाई की है। और फिर मशीन डिज़ाइन में मास्टर ऑफ़ टेक्नोलॉजी किया है।
आविष्कार सिर्फ एयर कंडीशन लैब और कीमती उपकरण से नहीं होते यह बात रियाज़ ने साबित कर दिया है। अगर इतनी मेहनत से की गई आविष्कार इंसानियत और उद्योगों को काम नहीं आ पायें तो यह अच्छा नहीं है। वर्तमान में सिंगरौली को "ऊर्जा की राजधानी" के रूप में जाना जाता है। लेकिन इतिहास में आविष्कारकों के योगदान सिंगरौली को एक नया पहचान दिलाने में मील का पत्थर साबित होगा। संसाधनों और सुविधाएं के अभाव में आज प्रतिभाशाली वैज्ञानिक और आविष्कारक गुमनामी के अंधेरे में रहने को मजबूर हैं। अब देखना यह है कि सरकार ऐसे व्यक्तिगत आविष्कारक एवं वैज्ञानिक प्रतिभाओं का कब सुध लेती है।
*रियाज़ ने सारे सँघर्षरत आविष्कारकों और वैज्ञानिकों के तरफ से सरकार से निम्नलिखित मांग की है :-* आविष्कारकों के व्यक्तिगत और आश्रितों के खर्चों को पूरा करने की चुनौती को समझते हुए प्रोटोटाइप विकसित करते समय लगभग 35000 से 50000 रुपये मासिक फेलोशिप दिया जाए और प्रोटोटाइप विकसित करने के लिए भी अनुदान दिया जाए । मध्यप्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों में निधि-ई.आई.आर., निधि प्रयास, सभी "जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद" की योजनाएं का केंद्र होना चाहिए। अभी इन सभी योजनाओं का लाभ लेने के लिए एक भी केंद्र मध्यप्रदेश में नहीं हैं। और सभी केंद्र एवं राज्य शासन से वित्त पोषित सभी योजनाओं का केंद्र भी जिला मुख्यालयों में होना चाहिए।